मिर्ज़ा असदुल्ला ख़ाँ ग़ालिब, उर्दू शायरी का वो चमकता सितारा हैं जिनकी रचनाएँ आज भी दिलों की धड़कनों में बसी हुई हैं। 27 दिसंबर 1797 को आगरा में जन्मे ग़ालिब ने महज़ अल्फ़ाज़ों से इश्क़, दर्द, तन्हाई और जिंदगी की जटिलताओं को एक ऐसी गहराई दी, जो आज भी हर पीढ़ी को अपना बना लेती है। ग़ालिब न सिर्फ शायर थे, वो जज़्बातों के सच्चे रहबर थे – और उनकी शायरी, एक जिंदा एहसास।
ग़ालिब की शायरी सिर्फ महबूब की बात नहीं करती, वो खुदा से शिकायत करती है, किस्मत से सवाल करती है, और जिंदगी को आईना दिखाती है। उनका हर शेर जैसे दिल की दीवारों पर खुदा गया हो। उन्होंने उर्दू और फ़ारसी दोनों भाषाओं में शायरी की, लेकिन उनका उर्दू कलाम हर आम इंसान की रूह को छू जाता है।
हम नीचे मिर्ज़ा ग़ालिब की चुनिंदा और सबसे बेहतरीन शायरी हिंदी मैं आपके लिए ला रहे हैं, ताकि आप भी उस एहसास को महसूस कर सकें, जो ग़ालिब ने कभी अपनी कलम से लिखा था।
Mirza Ghalib Ki Shayari
मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू शायरी के बादशाह हैं। उनकी शायरी में मोहब्बत का गहरापन, तन्हाई की चुप्पी और दिल की बेचैनी साफ़ झलकती है। यहाँ मिलेंगी ग़ालिब की चुनिंदा शायरी, जो हर दिल को छू जाए और हर एहसास को ज़ुबान दे। हर शेर एक आईना है दिल की दुनिया का।

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के.
तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’,
तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है.
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले.
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज,
पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले.
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब,
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है.
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता.
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’,
शर्म तुम को मगर नहीं आती.
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है.
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे.
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई.
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ.
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक.
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां,
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन.
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते.
Motivational Mirza Ghalib Shayari
जहाँ दर्द हो, वहाँ उम्मीद भी ग़ालिब की शायरी में मिलती है। यहाँ पाएं प्रेरणादायक मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी, जो मुश्किल हालात में हौसला दे, सोच को गहराई दे और ज़िंदगी को समझने का नया नज़रिया दिखाए। हर शेर में होगा आत्मबल और उम्मीद का उजाला।

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है.
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.
हाथों की लकीरों पर मत जा ऐ ग़ालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नही होते.
ये जो जिंदगी के हालात हुआ करते है,
वक़्त वक़्त पर बदलते रहा करते है.
गंदगी जब मन में बस जाती है,
बुरी किस्मत भी फिर अच्छी नजर आती है.
ये जो कोशिशो की चमक हुआ करती है,
यही कामयाबी को धूमिल किया करती है.
ठोकर जब तक गिराया ना करती है,
कहा हमे चलना सिखाया करती है.
अंदर की ताकते लगा करती है,
तभी जिंदगी बाहर से आसान बना करती है.
जो फूलो सा मुस्कुराया करता है,
वो काँटों के बीच में भी खिल जाया करता है.
वक़्त मिला जुला होता है,
कभी मुरझाया तो कभी खिला होता है.
Love Mirza Ghalib Shayari
ग़ालिब की मोहब्बत सिर्फ इश्क़ नहीं, एक इबादत है। यहाँ मिलेंगी मोहब्बत पर ग़ालिब की शायरी, जो दिल की हर धड़कन को लफ़्ज़ों में पिरो देती है। हर शेर में होगा इश्क़ का जुनून, जुदाई की तड़प और वफ़ा की गहराई। पढ़िए और दिल से महसूस कीजिए।

तोहमते तो लगती रही रोज़ नयी नयी हम पर,
मगर जो सबसे हसीं इलज़ाम था वह तेरा नाम था.
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब,
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है.
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल के खुश रखने को “ग़ालिब” यह ख्याल अच्छा है.
तू तो वो जालिम है, जो दिल में रह कर भी मेरा न बन सका ,
ग़ालिब और दिल वो काफिर, जो मुझ में रह कर भी तेरा हो गया.
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा.
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,
मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह.
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे.
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए.
मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब,
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी.
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ,
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ.
वो जो काँटों का राज़दार नहीं,
फ़स्ल-ए-गुल का भी पास-दार नहीं.
Zindagi Mirza Ghalib Shayari
ज़िंदगी, उसके उतार-चढ़ाव, तन्हाइयाँ और फ़लसफ़े — सब कुछ मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी में साँस लेता है। यहाँ पाएं ग़ालिब की ज़िंदगी पर शायरी, जो हर इंसान की हकीकत को अल्फ़ाज़ों में ढाल देती है। हर शेर ज़िंदगी के एक नए रंग को दिखाएगा।

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
अब जीने के सिवा और कोई खुशी नहीं मिलती,
तेरे बिना जीवन की राह भी अब लंबी लगती है.
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आये क्यों,
रोयेंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताये क्यों.
बाज़ीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे.
हस्ती का एतमाद भी ग़ुर्बत में जा चुका,
अब ज़िन्दगी पे हँसने का मज़ा आ रहा है.
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता.
जला है जिस्म, जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो राख़, राख़ में चिंगारी ढूंढो.
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पे कहना कि यूँ होता तो क्या होता.
क़ैद-ए-हयात और भी ग़म हैं ज़माने में,
रहते हैं अभी लोग मोहब्बत नहीं करते.
है एक तीर जो सीने में रह गया ‘ग़ालिब’,
न जाने क्यों वो ज़ख्म भर नहीं पाया.
Sad Mirza Ghalib Shayari
ग़म, जुदाई और तन्हाई को जितने हसीन अंदाज़ में ग़ालिब ने बयां किया है, शायद ही कोई कर पाए। यहाँ पाएं ग़ालिब की सैड शायरी, जो दिल के टूटे हिस्सों को सहलाएगी और दर्द को समझने वाला साथी बन जाएगी। हर शेर में होगी रूह को छूने वाली तासीर।

आतिश -ऐ -दोज़ख में ये गर्मी कहाँ,
सोज़-ऐ -गम है निहानी और है.
बहुत दिनों से नहीं आई ख़ुशी की कोई ख़बर,
ग़म को ही पूछ लूँ अगर कोई हाल-ए-दिल बताए.
हसीनों से मिलो लेकिन मोहब्बत न करो ‘ग़ालिब’,
वो आँखों से भी दिल चुरा लेते हैं.
बनाके फ़क़्र को सौदा-ए-इश्क़ बेच दिया,
हमारे पास जो कुछ था वो तेरे नाम किया.
हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जाएँगे हम, तुमको ख़बर होने तक.
वफ़ा का नाम लेकर रो पड़े हम,
तुम्हारा नाम क्या लेते, हम तो टूट जाते.
दर्द मुझको ढूंढता है रोज़ नए बहाने से,
वो नहीं मिलता मुझे किसी पुराने अफ़साने से.
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है.
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और.
कहाँ तक तुझ से मैं अपने फ़साने की बात करता,
ये भी न हो सका मुझसे कि तुझ को भुला देता.
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता.
Mirza Ghalib Quotes
ग़ालिब के अल्फ़ाज़, सिर्फ शायरी नहीं, ज़िंदगी के फलसफ़े हैं। यहाँ मिलेंगे मिर्ज़ा ग़ालिब के कोट्स, जो सोच बदल दें, दिल छू लें और आत्मा तक उतर जाएं। हर लाइन में होगी गहराई, दर्शन और वो अंदाज़ जो सिर्फ ग़ालिब के पास था।

जफ़ा-ए-मोहब्बत में भी तुमसे कोई शिकवा नहीं,
दिल के किसी कोने में तो कोई हसरत नहीं.
हम जीते हैं, उम्मीदों की चादर में छुपे हुए,
लेकिन क्या करें, ये दिल कभी भी सुकून नहीं पा सका.
चाहता हूँ बस, तुझसे वही बात हो जाए,
फूलों से वफ़ा की, बारीक़ बात हो जाए.
शाम-ए-फिराक़ पर दिल चाहता है,
दिल के मोती भी अब बिखर जाएँ.
ज़िन्दगी की कशमकश में, खुद को खो बैठे हैं,
अब तुझे तलाशते हैं, तुझे ही खो बैठे हैं.
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं.
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं ‘ग़ालिब’,
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है.
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी,
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती.
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’,
शर्म तुम को मगर नहीं आती.
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ‘ग़ालिब’,
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं.
जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए.

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